Wednesday, 7 August 2019

Main Woh Nadi hoon


मैं वह नदी हूं ...

मैं वह नदी हूं ...प्रवाह के विरुद्ध चलना चाहती हूं.
मेरा उगम ही चट्टानों से हुआ है,
चट्टानों को चीरते हुए, अपने रास्ते खोजते,
अनंत कठिनाईयों से एक हाथ हुई हूं मैं,
मजबूरी में ही सही, अनगिनत अड़चनों को लांघने में,
अपना प्रवाह कई बार बदलना पड़ा है मुझे। 

 मैं वह नदी हूं जो प्रवाह के विरुद्ध जाना चाहती हूं...
ना बदलती तो रुक जाती, लुप्त हो जाती, बुझ जाती,
यह कैसे भूलती मैं की मेरे पर निर्भर अन्य कई जीव हैं?
मुझे तो चलते रहना ही पड़ेगा।
 
शायद इस विचार से मैंने अपने बहाव के रास्ते बदल लिए
पर बहती तो रही, रुकी तो नहीं, ना?
मैं वह नदी हूं जो प्रवाह के विरुद्ध जाना चाहती हूं...
 
 बुद्धिजीवि कहेंगे मैंने अपना मूलस्वरूप बदल दिया,
अपने तत्वों के साथ समझौता कर लिया,
पर वह उनका मानना होगा, मेरी मजबूरी को वह क्या समझे, और क्यूं समझे?

मेरे लिए समझना हृदय से होता है, उनके लिए मस्तिष्क वह जरियां हैं,
मैं वह नदी हूं जो प्रवाह के विरूद्ध चलना चाहती हूं,
और हमेशा चलती रहूंगी....
स्वरूपा


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